बड़हरा विधानसभा:क्या रहा है बड़हरा का चुनावी इतिहास, कौन पड़ेगा भारी?

बड़हरा विधानसभा:193 विधानसभा क्षेत्र बड़हरा भोजपुर जिले के तहत आरा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह विधानसभा क्षेत्र राजपूत प्रत्याशियों के लिए स्वर्ग कहा जाता है। हालांकि इस मिथक को तोड़ते हुए सरोज यादव ने राजद प्रत्याशी के रूप में 2015 के विधानसभा चुनाव में यहां से जीत हासिल की थी।
क्या रहा है बड़हरा का चुनावी इतिहास?
बड़हरा विधानसभा क्षेत्र का गठन 1951 में हुआ था। 1952 के प्रथम चुनाव में यहां से रामविलास सिंह ने अखिल भारतीय राम राज्य परिषद से चुनाव जीता था। 1957 से 1962 के बीच इस विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व नहीं था। इस सीट पर स्वतंत्रता सेनानी अंबिका शरण सिंह और उनके परिवार का दबदबा रहा है। वे इस सीट से दो बार 1967 एवं 1977 में कांग्रेस की टिकट से चुनाव जीते और मंत्री बने। उनके बाद उनके बेटे व वर्तमान विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह छह बार यहां से अलग-अलग दलों से विधायक रहे। 2020 के चुनाव में उन्होंने बीजेपी के टिकट से राजद प्रत्याशी सरोज यादव को 5000 से अधिक मतों से पराजित किया। इसके पूर्व दो बार 2000 एवं 2010 में राजद से, दो बार जनता दल से 1990 एवं 1995 में तथा एक बार जनता पार्टी से 1985 में चुने गए थे। फरवरी 2005 तथा अक्टूबर 2005 में जदयू की आशा देवी यहां से दो बार विधायक रही।
क्या है जातीय समीकरण?
यहां का जातीय समीकरण देखा जाए तो राजपूत, कोइरी और यादव मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। इसके अलावा दलित एवं अति पिछड़ी जातियों की भी संख्या अच्छी खासी है।
इस बार के क्या है चुनावी मुद्दे?
बरहरा विधानसभा क्षेत्र गंगा एवं सोन नदी के किनारे स्थित है। यह विधानसभा क्षेत्र बाढ़, कटाव एवं विस्थापन की समस्या से जूझता रहा है। दूसरे, आरा-छपरा उच्च मार्ग पर जाम की गंभीर समस्या रहती है। इन दो स्थानीय मुद्दों के अतिरिक्त बिहार में बढ़ते अपराध, शराबबंदी, पलायन, रोजगार एवं विकास जैसे मुद्दे चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं। विभिन्न राजनीतिक दल इन मुद्दों के साथ-साथ अपने जातीय समीकरण को साधने में लगे हुए हैं।
कौन हो सकते है उम्मीदवार?
बरहरा विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशियों के बीच टिकट की सर्वाधिक होड़ देखने को मिल रही है। यह सीट एनडीए की ओर से भाजपा के कोटे में जाने की पूरी संभावना है और इस सीट से ज्यादा संभावना है कि राघवेंद्र प्रताप सिंह को ही भाजपा से टिकट मिले। लेकिन उनकी बढ़ती उम्र को देखते हुए भाजपा से टिकट के लिए अजय सिंह, सूरजभान सिंह एवं आशा देवी जैसे नेता प्रयासरत हैं। कभी-कभी पूर्व केंद्रीय मंत्री राजकुमार सिंह तथा भोजपुरी गायक पवन सिंह के भी यहां से चुनाव लड़ने की खबरें उड़ती रहती हैं। जदयू के कोटे में सीट जाने की स्थिति में रणविजय सिंह यहां से प्रबल दावेदार हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में राघवेंद्र प्रताप सिंह की अपने पुराने घर राजद में वापसी हो सकती है। परंतु राजद की तरफ से सरोज यादव टिकट के प्रबल दावेदार हैं। अन्य लोगों में मौर्य होटल के मालिक बी डी सिंह, राजद में राजपूत नेता रामबाबू सिंह जैसे राजपूत नेता राजद से टिकट के लिए प्रयासरत हैं। इसके अतिरिक्त सोनाली सिंह और सुरेंद्र सिंह जैसे नेता भी टिकट के लिए प्रयासरत हैं। कुल मिलाकर यहां राजद एवं भाजपा का टिकट मिलना ही आधा चुनाव जीतने के बराबर है क्योंकि दोनों दलों के बीच केवल 5000 मतों के अंतर से हार जीत होना है। जन सुराज इन्हीं नेताओं में से किसी पर अपना दांव लगा सकता है। 2025 के विधानसभा चुनाव में यह देखना बड़ा रोचक होगा कि राजपूत किला कहे जाने वाले बड़हरा विधानसभा में इस बार किन्हें टिकट मिलता है और कौन किला फतह कर पाते है?